बिहार। कायस्थ समाज, जो सदियों से बुद्धि न्याय, प्रशासन, शिक्षा, कला और लेखनी के क्षेत्र में अग्रणी रही है, आज सामाजिक और राजनीतिक उपेक्षा का शिकार हो रही है। यह बातें पटना सिटी के नौजर घाट स्थित चित्रगुप्त मंदिर के प्रांगण में पूजा अर्चना करने के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा उन्होंने कहा कि यह विडंबना ही है कि एक ऐसा समाज जो शत: प्रतिशत शिक्षित होने का गौरव रखता है, वह आज बेरोजगारी और अवसरहीनता की मार झेल रहा है।”कायस्थ समाज एक हो”-यह नारा कई संगठन वर्षों से देते आ रहे हैं, लेकिन क्या हमने इस नारे के मार्ग को आत्मसात किया है? क्या जो संगठन इसे दोहराता है, वे आपस में एक हैं? नहीं। यही सबसे बड़ी विडंबना है। आगे श्रीमती सिन्हा ने कहा कि जब तक कायस्थ समाज के संगठन स्वयं एकजुट नहीं होंगे, तब तक समाज की एकता केवल भाषणों और घोषणाओं में सीमित रहेगी आज समय की मांग है कि कायस्थ समाज के सभी संगठन अपने-अपने अहंकार और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को त्याग कर एक मंच पर आए। विचारों की भिन्नता हो सकती है, लेकिन उपदेश तो एक है-समाज का उत्थान। हमें एक बार फिर से एकजुट होकर यह साबित करना होगा की कायस्थ समाज केवल इतिहास में नहीं, वर्तमान और भविष्य में भी नेतृत्व करने का सामर्थ्य रखता है। इसके लिए जरूरी है कि हमें केवल “एकता”की बातें ना करें बल्कि व्यावहारिक रूप से एक हो जाए।





