सोनभद्र में ‘बालू का सिंडिकेट’! रात 11 से 5 बजे तक ‘खुली लूट’, प्रधान और पुलिस की मिलीभगत के गंभीर आरोप
बेबसी’ का अनोखा नाटक! प्रधान प्रतिनिधि खुद IGRS पर शिकायत कर बन रहे ‘मासूम’, ग्रामीणों ने खोली पोल
संपादक विवेक कुमार पाण्डेय 6264145214
कुड़ारी /सोनभद्र। जब पूरा कुड़ारी गांव सो रहा होता है, तब ‘बालू माफिया’ का काला साम्राज्य जाग उठता है। यहाँ रात के ठीक 11:00 बजे से लेकर सुबह 5:00 बजे भोर तक, अवैध बालू खनन का नंगा नाच धड़ल्ले से जारी है। बेखौफ खननकर्ता नदी का सीना चीर रहे हैं और सरकारी राजस्व को करोड़ों का चूना लगा रहे हैं।
‘रक्षक’ ही ‘भक्षक’? प्रधान पर उठी उंगलियाँ
इस पूरे ‘काले कारोबार’ का आरोप किसी और पर नहीं, बल्कि गाँव के ही तात्कालिक प्रधान और प्रधान प्रतिनिधि पर लग रहा है। सूत्रों और ग्रामीणों के अनुसार, यह ‘सिंडिकेट’ उन्हीं के संरक्षण में फल-फूल रहा है। यह कोई नई बात नहीं है; विगत 5 वर्षों से इन पर लगातार ऐसे आरोप लगते रहे हैं।
प्रशासन को ‘गुमराह’ करने का ‘मास्टर प्लान’
मामला तब और भी दिलचस्प हो जाता है जब इस बाबत प्रधान प्रतिनिधि से पूछताछ की जाती है। वह बड़ी चालाकी से खुद को ‘बेबस’ और ‘लाचार’ दिखाते हैं। वह IGRS पोर्टल पर ख़ुद के द्वारा की गई शिकायतों की रसीदें दिखाकर यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि खननकर्ता उनकी नहीं सुन रहे और वह मजबूर हैं।
लेकिन, गाँव की जनता इस ‘नाटक’ को बखूबी समझ रही है। ग्रामीणों का सवाल है कि जो प्रधान इतने भारी बहुमत से जीतता है, वह चंद माफियाओं के सामने ‘बेबस’ कैसे हो सकता है? यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है।
थाने का ‘आशीर्वाद’ और ‘सिंडिकेट’ का खेल!
ग्रामीणों ने जो आरोप लगाए हैं, वे बेहद गंभीर हैं। उनके अनुसार, यह पूरा ‘सिंडिकेट’ ग्राम प्रधान, प्रधान प्रतिनिधि और जुगैल थाने के कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों की मिलीभगत से चल रहा है। आरोप है कि थाने के संरक्षण में ही सारे नियम ताक पर रखकर इस अवैध खनन को अंजाम दिया जा रहा है।
मुख्यमंत्री के आदेश को खुली चुनौती
यह पूरा प्रकरण माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस’ के आदेश को सीधी चुनौती है। इस समाचार का उद्देश्य केवल अवैध खनन को उजागर करना नहीं, बल्कि इस संगठित लूट में शामिल सभी खनन कर्ताओं, अधिकारियों और कर्मचारियों पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई सुनिश्चित कराना और अब तक हुई राजस्व क्षति की पाई-पाई वसूलना है।
अब देखना यह है कि सोनभद्र का जिला प्रशासन और पुलिस के उच्च अधिकारी इस ‘सिंडिकेट’ की कमर तोड़ते हैं, या मुख्यमंत्री का आदेश सोनभद्र की फाइलों में ही दबा रह जाता है।





